आज के समय में देश के बुजुर्गों के सामने कई तरह की समस्याएँ आती हैं, खासकर जब बात उनकी संपत्ति और देखभाल की हो। बहुत बार ऐसा देखा गया है कि माता-पिता अपनी मेहनत की कमाई या संपत्ति अपने बच्चों को दे देते हैं, लेकिन बाद में वही बच्चे उनकी देखभाल नहीं करते। ऐसे हालात में बुजुर्ग खुद को अकेला और असहाय महसूस करते हैं।
भारत सरकार ने बुजुर्गों की सुरक्षा और भरण-पोषण के लिए कई कानून बनाए हैं, जिनमें सबसे अहम है ‘माता-पिता और वरिष्ठ नागरिकों का भरण-पोषण और कल्याण अधिनियम, 2007’। इस कानून के तहत बुजुर्गों को अपने बच्चों या रिश्तेदारों से भरण-पोषण का अधिकार मिलता है। हाल ही में सुप्रीम कोर्ट ने इस कानून की धारा 23 पर एक बड़ा फैसला सुनाया है, जिससे देश के लाखों सीनियर सिटीजन को राहत मिली है।
यह फैसला उन बुजुर्गों के लिए उम्मीद की किरण है, जो अपने ही घर में अपनों से परेशान हैं। अब उन्हें अपने अधिकारों के लिए लंबी कानूनी लड़ाई नहीं लड़नी पड़ेगी, क्योंकि सुप्रीम कोर्ट ने साफ कर दिया है कि बुजुर्गों के हितों की रक्षा सबसे पहले होगी।
सुप्रीम कोर्ट का Section 23 पर बड़ा फैसला
माता-पिता और वरिष्ठ नागरिकों का भरण-पोषण और कल्याण अधिनियम, 2007 (Senior Citizens Act) एक ऐसा कानून है, जो 60 साल या उससे ज्यादा उम्र के लोगों को अपने बच्चों या वारिसों से भरण-पोषण पाने का अधिकार देता है। इस एक्ट की धारा 23 बहुत खास है। इसके तहत अगर कोई बुजुर्ग अपनी संपत्ति अपने बच्चों या किसी रिश्तेदार को देता है, और बदले में उनसे देखभाल और भरण-पोषण की उम्मीद करता है, तो वह कानूनी रूप से सुरक्षित रहता है।
अगर संपत्ति पाने वाला व्यक्ति बुजुर्ग की देखभाल नहीं करता या उसे परेशान करता है, तो बुजुर्ग ट्रिब्यूनल में जाकर संपत्ति वापस मांग सकता है। सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में साफ कर दिया है कि ट्रिब्यूनल को यह अधिकार है कि वह संपत्ति का ट्रांसफर रद्द कर सकता है और बुजुर्ग को उसकी संपत्ति वापस दिला सकता है।
यह फैसला खास तौर पर उन मामलों में राहत देता है, जहां बुजुर्गों ने अपनी संपत्ति बच्चों या रिश्तेदारों को इस शर्त पर दी थी कि वे उनकी देखभाल करेंगे, लेकिन बाद में उन्होंने अपने वादे को पूरा नहीं किया। कोर्ट ने कहा कि ऐसे मामलों में ट्रिब्यूनल तुरंत कार्रवाई कर सकता है और बुजुर्ग को राहत दे सकता है।
कौन-कौन इस कानून का लाभ ले सकता है?
इस कानून का लाभ वे सभी बुजुर्ग ले सकते हैं, जिनकी उम्र 60 साल या उससे ज्यादा है। महिलाएँ, जिनकी उम्र 58 साल या उससे ज्यादा है, वे भी इसमें शामिल हैं। अगर कोई बुजुर्ग अपने बच्चों या रिश्तेदारों को संपत्ति ट्रांसफर करता है और बदले में देखभाल की शर्त रखता है, तो वह इस कानून के तहत ट्रिब्यूनल में आवेदन कर सकता है।
कैसे करें आवेदन?
अगर किसी बुजुर्ग को लगता है कि उसकी देखभाल नहीं हो रही या उसे परेशान किया जा रहा है, तो वह अपने जिले के ट्रिब्यूनल में आवेदन कर सकता है। ट्रिब्यूनल मामले की सुनवाई करता है और अगर सही पाया गया तो संपत्ति वापस दिलाने या बेदखली का आदेश दे सकता है।
आवेदन के लिए जरूरी दस्तावेज़:
- उम्र का प्रमाण पत्र
- संपत्ति ट्रांसफर से जुड़ी डीड या कागजात
- देखभाल न होने के सबूत (अगर हों)
सरकार और समाज की भूमिका
सरकार ने इस कानून के तहत हर जिले में ट्रिब्यूनल बनाए हैं, ताकि बुजुर्गों को जल्दी न्याय मिल सके। इसके अलावा, कई राज्य सरकारें बुजुर्गों के लिए हेल्पलाइन और अन्य सुविधाएँ भी देती हैं। समाज की भी जिम्मेदारी है कि बुजुर्गों को उनका सम्मान और अधिकार मिले।