आज के समय में लेन-देन के लिए चेक का इस्तेमाल आम हो गया है। लेकिन कई बार ऐसा होता है कि बैंक में चेक जमा करने के बाद वह बाउंस हो जाता है यानी पैसे नहीं मिलते। ऐसे में न सिर्फ लेन-देन रुक जाता है, बल्कि कानूनी पचड़े में भी फंस सकते हैं।
चेक बाउंस होना भारत में एक गंभीर अपराध माना जाता है, और इसके लिए सख्त सजा और जुर्माने का प्रावधान है।
इस आर्टिकल में हम आपको बताएंगे कि चेक बाउंस पर कितनी सजा हो सकती है, जुर्माना कितना लग सकता है, और इसकी पूरी कानूनी प्रक्रिया क्या है। साथ ही, नए नियमों के अनुसार क्या बदलाव हुए हैं, ये भी जानेंगे।
चेक बाउंस के मामलों की संख्या भारत में लगातार बढ़ रही है। कई बार लोग जानबूझकर या अनजाने में ऐसे चेक दे देते हैं जिनके खाते में पर्याप्त बैलेंस नहीं होता। इससे सामने वाले व्यक्ति को आर्थिक नुकसान होता है।
आइए विस्तार से जानते हैं कि चेक बाउंस पर सजा कितनी हो सकती है, जुर्माना कितना लगता है, और इसकी पूरी कानूनी प्रक्रिया क्या है। साथ ही, जानेंगे कि अगर आपके साथ चेक बाउंस का मामला होता है तो आपको क्या करना चाहिए।
Cheque Bounce Law
बिंदु | विवरण |
लागू कानून | नेगोशिएबल इंस्ट्रूमेंट्स एक्ट, 1881 (धारा 138) |
सजा | अधिकतम 2 साल (कुछ मामलों में 3 साल तक) की जेल |
जुर्माना | चेक की राशि का दोगुना या 5000 रुपए तक (न्यूनतम) |
केस दर्ज करने की सीमा | 30 दिन के अंदर लीगल नोटिस, फिर 15 दिन में भुगतान, फिर 30 दिन में केस |
अपराध का प्रकार | जमानती, लेकिन गैर-समझौता योग्य |
कोर्ट फीस | केस की राशि के अनुसार अलग-अलग |
शिकायत किसके खिलाफ | चेक जारी करने वाले (Drawer) के खिलाफ |
नया नियम (2025) | 24 घंटे में बैंक को कारण बताना अनिवार्य, सजा और जुर्माना सख्त |
Cheque Bounce पर सजा कितनी हो सकती है?
नेगोशिएबल इंस्ट्रूमेंट्स एक्ट, 1881 की धारा 138 के तहत चेक बाउंस एक दंडनीय अपराध है। नए नियमों के अनुसार, अगर कोई जानबूझकर चेक बाउंस करता है, तो उसके लिए निम्नलिखित सजा का प्रावधान है:
- अधिकतम 2 साल की जेल (पहले ये 1 साल थी, लेकिन अब संशोधन के बाद 2 साल कर दी गई है)।
- चेक की राशि के दोगुने तक का जुर्माना लगाया जा सकता है, या दोनों सजा एक साथ भी दी जा सकती है।
- कोर्ट के विवेक के अनुसार सजा कम या ज्यादा भी हो सकती है, लेकिन अधिकतम सीमा 2-3 साल और जुर्माना चेक राशि के दोगुने तक ही है।
- अगर बार-बार चेक बाउंस होता है, तो और भी सख्त सजा मिल सकती है, जैसे भ्रष्टाचार अधिनियम के तहत कार्रवाई।
Cheque Bounce की पूरी कानूनी प्रक्रिया
1. चेक बाउंस होना और बैंक मेमो मिलना
- जब चेक बाउंस होता है, तो बैंक “चेक रिटर्न मेमो” जारी करता है।
- इस मेमो में बाउंस का कारण लिखा होता है, जैसे – insufficient funds, account closed, signature mismatch आदि।
2. लीगल नोटिस भेजना
- चेक बाउंस होने के 30 दिनों के भीतर चेक जारी करने वाले (Drawer) को लीगल नोटिस भेजना जरूरी है।
- यह नोटिस रजिस्टर्ड पोस्ट या किसी ऐसे माध्यम से भेजना चाहिए, जिससे डिलीवरी का सबूत मिले।
- नोटिस में चेक की डिटेल, बाउंस का कारण, और 15 दिन के अंदर भुगतान की मांग लिखी जाती है।
3. भुगतान का मौका
- नोटिस मिलने के बाद आरोपी के पास 15 दिन का समय होता है कि वह चेक की रकम चुका दे।
- अगर आरोपी 15 दिन में भुगतान कर देता है, तो मामला यहीं खत्म हो जाता है।
4. कोर्ट में केस दर्ज करना
- अगर 15 दिन में भुगतान नहीं होता, तो नोटिस की मियाद पूरी होने के 30 दिनों के अंदर कोर्ट में केस दर्ज किया जा सकता है।
- केस मजिस्ट्रेट कोर्ट में दर्ज होता है, और इसमें सभी जरूरी दस्तावेज (चेक, बैंक मेमो, नोटिस की कॉपी, डिलीवरी प्रूफ) लगाना जरूरी है।
5. कोर्ट की प्रक्रिया
- कोर्ट दोनों पक्षों की सुनवाई करता है।
- अगर आरोपी दोषी पाया जाता है, तो उसे सजा और जुर्माना दोनों हो सकता है।
- कोर्ट केस के तथ्यों के आधार पर फैसला सुनाता है।
6. समझौता या सुलह
- केस के दौरान दोनों पक्ष आपसी समझौते से मामला निपटा सकते हैं।
- अगर समझौता हो जाता है, तो कोर्ट केस बंद कर सकता है।
Cheque Bounce के नए नियम 2025
- अब बैंक को चेक बाउंस होने पर 24 घंटे के अंदर कारण बताना अनिवार्य है।
- जानबूझकर चेक बाउंस करने पर 2 साल की जेल और चेक राशि के दोगुने तक का जुर्माना लग सकता है।
- तकनीकी गड़बड़ी या बैंक की गलती पर पुराने नियम ही लागू होंगे।
- बार-बार चेक बाउंस करने वालों पर और सख्त कार्रवाई की जाएगी।
Cheque Bounce केस में कौन-कौन सी धाराएं लगती हैं?
- धारा 138 (नेगोशिएबल इंस्ट्रूमेंट्स एक्ट, 1881): मुख्य धारा, जिसके तहत केस दर्ज होता है।
- धारा 142: शिकायत दर्ज करने की प्रक्रिया बताती है।
- धारा 420 (आईपीसी): अगर धोखाधड़ी की मंशा साबित हो जाए तो यह धारा भी लग सकती है।
Cheque Bounce केस में बचाव के उपाय
- चेक बाउंस का कारण अगर तकनीकी गड़बड़ी या बैंक की गलती है, तो उसका सबूत पेश करें।
- अगर भुगतान करने की मंशा थी और कोई मजबूरी रही, तो कोर्ट में उसका प्रमाण दें।
- लीगल नोटिस का जवाब समय पर दें और अगर संभव हो तो रकम चुका दें।
- अगर केस झूठा है, तो उसके लिए सबूत जुटाएं।
Cheque Bounce केस में जरूरी दस्तावेज
- बाउंस हुआ चेक (Original)
- बैंक द्वारा जारी “चेक रिटर्न मेमो”
- लीगल नोटिस की कॉपी और डिलीवरी प्रूफ
- बैंक स्टेटमेंट (अगर जरूरी हो)
- केस से संबंधित अन्य दस्तावेज
Cheque Bounce केस में जमानत
चेक बाउंस का अपराध जमानती है। यानी आरोपी को कोर्ट से जमानत मिल सकती है। लेकिन अगर आरोपी बार-बार ऐसा करता है या केस गंभीर है, तो कोर्ट जमानत देने से इनकार भी कर सकती है।
Cheque Bounce केस में कौन-कौन दोषी हो सकता है?
- चेक जारी करने वाला व्यक्ति (Drawer)
- अगर कंपनी का चेक है, तो कंपनी के जिम्मेदार अधिकारी
- पार्टनरशिप फर्म के पार्टनर (अगर फर्म के नाम से चेक है)
Cheque Bounce केस में समयसीमा
- चेक बाउंस होने के 30 दिन के अंदर लीगल नोटिस भेजना जरूरी है।
- नोटिस मिलने के 15 दिन के अंदर भुगतान करना जरूरी है।
- अगर भुगतान नहीं हुआ, तो 15 दिन की मियाद खत्म होने के 30 दिन के अंदर कोर्ट में केस दर्ज करना जरूरी है।
निष्कर्ष
चेक बाउंस एक गंभीर अपराध है, जिसके लिए अब सख्त सजा और जुर्माने का प्रावधान है। अगर आप चेक का लेन-देन करते हैं, तो हमेशा सावधानी बरतें। चेक देने से पहले खाते में पर्याप्त पैसे रखें, चेक सही तरीके से भरें, और किसी भी गलती से बचें।
अगर आपके खिलाफ चेक बाउंस का केस दर्ज हो गया है, तो तुरंत लीगल सलाह लें और समय पर कार्रवाई करें। नए नियमों के अनुसार अब केसों का निपटारा जल्दी होगा और दोषियों को सख्त सजा मिलेगी।
Disclaimer: यह आर्टिकल केवल जानकारी के उद्देश्य से लिखा गया है। इसमें दी गई जानकारी कानून की सामान्य व्याख्या है, जो समय-समय पर बदल भी सकती है।
किसी भी कानूनी कार्रवाई या सलाह के लिए हमेशा योग्य वकील से संपर्क करें। चेक बाउंस पर सजा और जुर्माना पूरी तरह असली है और यह भारतीय कानून के तहत लागू होता है। अगर आप चेक बाउंस के मामले में फंसे हैं, तो इसे हल्के में न लें और उचित कानूनी सलाह जरूर लें।